Friday, 13 June 2025

नालायक – कहानी

 नालायक – कहानी

                                                        पारस अपने माता – पिता की दो संतानों में छोटा था | बड़ी बहन कोमल सबकी लाड़ली बनी हुई थी | इसका मुख्य कारण है उसका सुसंस्कृत होना एवं पढ़ाई में अव्वल आना था | पढ़ाई के साथ – साथ घर के कामों में हाथ बंटाना और सभी का सम्मान करना | इन गुणों के चलते कोमल को उसके परिवार में सभी प्यार देते थे | दूसरी ओर पारस का न तो पढ़ाई में मन लगता था न ही घर के कामों में I पारस के दादा – दादी का प्यारा और लाड़ला होने के कारण ही वह जिद्दी होता चला गया I पारस पर किसी की भी बात का कोई असर नहीं होता था I इसी के चलते घर में पारस को न ही सम्मान मिलता और न ही प्यार I
                                                    पारस के पिता सरकारी दफ्तर में चपरासी के पद पर कार्यरत थे I वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा उनकी तरह चपरासी बने I किन्तु उनके द्वारा किये गए प्रयास नाकाफ़ी रहे और आये दिन की झिड़कियों से परेशान होकर पारस पहले से भी ज्यादा जिद्दी होता चला गया I पारस के पिता पारस के मोबाइल के आवश्यकता से ज्यादा उपयोग करने पर भी आये दिन उसे डांट देते थे I कभी – कभी तो उसे नालायक भी कह दिया करते थे I
                                              पारस को यू ट्यूब पर वीडियो देखने का बहुत शौक था I घर के लोग उसकी इस आदत से भी परेशान थे I
                                          एक दिन की बात है I पारस किसी बात से नाराज़ होकर घर से दूर सड़क पर बने पुल की रेलिंग पर बैठ जाता है I अचानक उसे कुछ लोगों के धीरे – धीरे बात करने की आवाज सुनाई देती है I पारस पुल के दूसरी ओर छुपकर उनकी बातें सुनने की कोशिश करता है तो उसे पता चलता है कि वे लोग शहर में आतंकी गतिविधि की योजना बना रहे हैं I पारस धीरे से वहां से कुछ दूरी पर जाकर उनकी गतिविधि पर नज़र रखने लगता है और पुलिस को पूरी घटना की जानकारी दे देता है I
जब तक पुलिस वहां पहुचती है वे सभी आतंकवादी वहां से निकलकर घटना को अंजाम देने के लिए चल पड़ते हैं I किन्तु पुलिस को अचानक देख दो आतंकवादी अपने आपको बम से उड़ा देते हैं और बाकी दो भागने का प्रयास करते हैं तो पारस उनका पीछा करता है वह एक आतंकवादी को दबोच लेता है किन्तु वह खुद को घायल होने से नहीं बचा पाता और आतंकवादी के चाकू का वार उसकी एक बाजू को चीर देता है I इस हालत में भी वह उस आतंकवादी को पकड़े रहता है और दूसरे आतंकवादी को पुलिस अपनी गोली से घायल कर देती है I
                                            पारस को तुरंत शहर के बड़े अस्पताल ले जाया जाता है I चूंकि खून ज्यादा बह चुका होता है I पारस के साहस की घटना सभी चैनल का हिस्सा हो जाती हैं I घर वाले भी भागकर अस्पताल पहुँच जाते है और पारस की इस बहादुरी के लिए उसे ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं I और उसके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं I भारत सरकार की ओर से पारस को सेना में विशेष पद देकर सम्मानित किया जाता है किन्तु एक शर्त होती है कि वह बारहवीं की पढ़ाई कम से कम 60% अंक से पास करे I तब तक सरकार की ओर से उसे प्रतिमाह 25000 रुपये दिए जाते रहेंगे I
                                                           सारा परिवार पारस की इस उपलब्धि पर खुश है और पारस भी I शहर में आयोजित किये जाने वाले विशेष कार्यक्रमों में पारस को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया जाने लगा और उसकी बहादुरी के किस्से बच्चों को प्रेरित करने लगे I एक बार एक स्कूल के कार्यक्रम में एक बच्चे ने पारस से पूछ लिया कि आपके भीतर ऐसा साहस कहाँ से आया तो पारस ने जवाब दिया कि मुझे यू ट्यूब पर सैनिकों की बहादुरी के किस्से देखना अच्छा लगता था और मैंने प्रण किया था कि एक दिन मैं अपने देश के लिए कुछ न कुछ अवश्य करूंगा और दूसरी बात यह कि मैं अपने नाम के साथ लगे “नालायक” टाइटल को भी मिटाना चाहता था जो मेरे पिताजी कभी – कभी मुझे गुस्से में कह दिया करते थे I
                             अब पारस ने बारहवीं की शिक्षा पास कर ली थी  और अब वह भारतीय सेना का हिस्सा बनकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा था I 

                            आज पारस सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया था और परिवार के लिए भी I

कहानीकार -

अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

SPLIT UP SYLLABUS - 2025-26

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Wednesday, 14 May 2025

दोस्ती की कीमत – कहानी - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

 दोस्ती की कीमत – कहानी


                                                            विवेक और पारस गहरे दोस्त थे | वे दोनों एक दूसरे के पड़ोसी थे | उनके पिता भी एक ही कार्यालय में कार्यरत थे | दोनों परिवारों में काफी गहरे घरेलू सम्बन्ध थे | विवेक बचपन से ही ज्यादा संवेदनशील था | जबकि पारस चंचल स्वभाव का था | विवेक अपनी दोस्ती के लिए किसी भी हद तक जा सकता था |

                                                          एक बार की बात है जब पारस ने मोहल्ले में साइकिल चलाते हुए एक बच्चे के ऊपर साइकिल चढ़ा दी थी | तब इस घटना को पारस के कहने पर विवेक ने अपने ऊपर ले लिया था क्योंकि वह जानता था कि यदि पारस के पापा को पता चल गया तो वो पारस की चमड़ी उधेड़ देंगे | इस घटना के बाद पारस को लगने लगा कि जब भी ऐसी कोई घटना होगी वह अपने दोस्त विवेक की मदद से खुद को बचा लेगा |
                                                        एक दिन पारस अपने दोस्त के साथ बाज़ार जा रहा था | रास्ते में जब वह गलत साइड से सड़क पार कर रहा था तो उसे विवेक ने रोका | कितु पारस ने विवेक की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और सड़क पार करने लगा | इसी बीच सड़क पर आ रही एक मोटर साइकिल से वह टकरा गया | वैसे तो उसे कोई ख़ास चोट तो नहीं लगी पर उसने गुस्से में एक पत्थर उठाया और मोटर साइकिल वाले को दे मारा | मोटर साइकिल वाले के सिर से खून निकलने लगा | यह देख पारस वहां से भाग गया | विवेक ने भी इस घटना का जिक्र किसी से नहीं किया | बात आई और गई हो गयी | इस घटना के बाद पारस का हौसला और बढ़ गया |
                                                      स्कूल में एक दिन खेलते – खेलते पारस को पीछे से उसकी ही कक्षा के एक बच्चे महेश का धक्का लगने से पारस गिर जाता है | यह बात पारस को नागवार गुजरती है | पारस , महेश से बदला लेने के रास्ते खोजने लगता है | आधी छुट्टी के बाद फिर से एक और खेल का पीरियड मिलने से पारस का चेहरा खिल उठता है | वह विवेक को कहता है कि वो महेश को साइंस लैब के पीछे भेज दे मुझे उससे एक ख़ास काम है | सुबह की घटना से अनजान विवेक , महेश को जाकर कहता है कि पारस तुझसे साइंस लैब के पीछे मिलने के लिए बुला रहा है | महेश को लगा कि सुबह वाली घटना को लेकर पारस माफ़ी माँगना चाहता होगा इसलिए वह उसके पास जा पहुंचा | उसके पारस के पास पहुँचते ही पारस ने उसे पीटना शुरू कर दिया और तब तक पीटता रहा जब तक कि महेश बेहोश नहीं हो गया | उसके बाद पारस धीरे से वहां से खेल के मैदान में आ गया ताकि सबको लगे कि वो सबके साथ खेल रहा था |
                                                           कुछ देर बाद किसी ने स्कूल के प्रिंसिपल को बताया कि महेश साइंस लैब के पीछे बेहोश पड़ा है | वे उसे वहां से उठाकर अस्पताल ले गए | डॉक्टर ने बताया कि महेश की हालत नाजुक है | वहां पारस ने विवेक को समझा दिया कि तूने आज तक मेरा साथ दिया है और आज भी मेरा साथ देगा | मुझे तुझ पर विश्वास है | विवेक ने कुछ नहीं कहा | दोनों घर चले गए | अगले दिन महेश की पिटाई को लेकर स्कूल में पूछताछ होने लगी | विवेक चुप रहा | किसी बच्चे ने बताया कि खेलते समय विवेक ने महेश से कुछ कहा था | उसके बाद महेश मैदान छोड़कर कहीं चला गया था | पर विवेक ने इस बात से इनकार कर दिया |
                                                     पारस भी चुप रहा | कुछ देर बाद प्रिंसिपल सर ने विवेक और पारस को अपने कमरे में बुलाया | पर दोनों अपनी बात पर अड़े रहे | जब सख्ती की गयी तो पता चला कि विवेक ने पारस का गुनाह अपने सिर पर ले लिया | पर प्रिंसिपल सर को विश्वास ही नहीं हो रहा था | उन्होंने सी सी टी वी कैमरे का सहारा लिया तो पता चला कि विवेक ही महेश को बुलाने खेल के मैदान पर गया था और दूसरे कैमरे से देखने पर पता चला कि पारस बहुत ही बेरहमी से महेश को पीट रहा था | आखिर पारस को अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी और उसके माता – पिता को स्कूल बुला लिया गया | वे भी हर बार की तरह सोच रहे थे कि गलती विवेक की रही होगी | क्योंकि बचपन से ही विवेक अपने दोस्त पारस को बचाता आ रहा था | पारस को स्कूल से निकाल दिया गया | साथ ही महेश के इलाज का सारा खर्च भी पारस के पिता से लिया गया |
                                       विवेक को भी पारस का साथ देने के लिए पंद्रह दिनों के लिए स्कूल से निष्कासित कर दिया गया | अपने दोस्त को और दोस्ती को बचाने के चक्कर में आज विवेक को ये दिन देखना पड़ा | अब उसे भी पता चल गया कि कोई भी हो उसकी गलती में उसका साथ नहीं देना चाहिए |

अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

चिम्पू जी की योगा क्लास – कहानी - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

 चिम्पू जी की योगा क्लास – कहानी

                                      चंपकवन की शान माने जाने वाला चिम्पू हिरण एक पेशेवर योगा शिक्षक था | उसकी योगा क्लास की ख्याति आसपास के जंगलों में भी थी | अपनी शारीरिक समस्याओं को लेकर भी आसपास के जंगलों से भी जानवर चिम्पू हिरण के स्वास्थ्य केंद्र आया करते थे | चिम्पू हिरण सभी से बहुत ही मृदु भाषा में बात किया करता था जिसके कारण सभी जानवरों को अपने समस्याएँ बहुत ही छोटी महसूस हुआ करती थी और वे खुद को तरोताजा और खुश मह्सूस किया करते थे | योगा के लगभग सभी आसनों के साथ – साथ चिम्पू हिरण को ज्यादातर बीमारियों के इलाज़ की भी अच्छी – खासी जानकारी थी या यूं कहें कि उसे महारत हासिल थी | चिम्पू हिरण को सभी आसनों से होने वाले लाभ के साथ – साथ यह भी जानकारी थी कि कौन सा आसन कब करना है और कैसे करना है ताकि सभी को उसका पूरा – पूरा लाभ मिल सके |
                                              इसी चंपकवन में एक चिपलू बिलौटा रहता था | एक दिन चिपलू बिलौटा भी चिम्पू हिरण के पास अपनी समस्या लेकर आया और उसने अपनी समस्या चिम्पू हिरण को बतायी | चिम्पू हिरण ने चिपलू बिलौटे की नब्ज़ देखी और उसे कुछ आसन बताये और कहा कि उसे यहीं पर रहकर ये आसन उसकी निगरानी में करने होंगे और साथ ही कुछ आयुर्वेदिक दवाएं भी लेनी होंगी ताकि वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाए | चिपलू बिलौटा कुछ दिन चिम्पू हिरण के ही स्वास्थ्य केंद्र में रहा | उसके बाद एक दिन वह वहां से अचानक गायब हो गया और पूरे जंगल में यह खबर फैला दी कि मुझे चिम्पू हिरण के इलाज और योगा आसनों से कुछ भी लाभ नहीं हुआ और उसकी तबीयत पहले से भी ज्यादा ख़राब हो गयी |
यह खबर जंगल में और आसपास के जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी | चिम्पू हिरण को यह सब सुनकर बड़ा ही दुःख हुआ | किन्तु उसने इस बात को ज्यादा तूल न देते हुए इसके शीघ्र निवारण के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया और जंगल के राजा झबरू शेर से जाकर कहा कि चिपलू बिलौटा मेरे पेशे को लेकर गलत खबर फैला रहा है | आपसे अनुरोध है कि उसे रोकिये और सही फैसला सुनाइये ताकि दूसरे बीमार जानवर मेरे इलाज़ और आसनों के लाभ से वंचित न हों |
                                                      जंगल के राजा झबरू शेर ने अगले दिन जंगल में सभा का आयोजन किया ताकि चिम्पू हिरण और चिपलू बिलौटे की बात सुनी जाए और इस मसले का शीघ्र निपटारा किया जाए | सभा का आयोजन किया गया एक ओर चिम्पू हिरण तो दूसरी ओर चिपलू बिलौटा खड़े थे | जंगल के राजा झबरू शेर ने सभा की कारवाई शुरू करने को कहा | सबसे पहले चिपलू बिलौटे की बात सुन गयी और उसके बाद चिम्पू हिरण की बात सुनी गयी | दोनों की बात सुनने के बाद झबरू शेर कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं था सो उसने सबसे पहले चिपलू बिलौटे से पूछा कि जब तुम चिम्पू हिरण के स्वास्थ्य केंद्र आये थे तब तुम्हें क्या बीमारी थी | इसके जवाब में चिपलू बिलौटे ने कहा कि मुझे सांस की बीमारी थी | किन्तु चिम्पू हिरण ने कहा कि इसे सांस की बीमारी नहीं थी अपितु इसे कैंसर की बीमारी थी जिसे मैंने योगा के आसनों और आयुर्वेदिक दवाओं से ठीक किया | एक बात और कि मेरे स्वास्थ्य में केंद्र आने के एक सप्ताह पहले जंगल में पंद्रह किलोमीटर की मैराथन दौड़ का आयोजन किया गया था जिसमे इस चिपलू बिलौटे ने भी भाग लिया था | यदि ये सांस की बीमारी से पीड़ित होता तो उस दौड़ में भाग कैसे ले सकता था | ऐसा कहते ही झबरू शेर को चिम्पू हिरण की बात ठीक लगी | अब तो चिपलू बिलौटा घबराने लगा और उसे लगा कि वह अब और ज्यादा झूठ नहीं बोल सकता |
                                                               इसके बाद चिपलू बिलौटे से बताया कि इसी जंगल के ज्यादातर जानवर मुझे पसंद नहीं करते थे और मुझे नासमझ और हर एक बात पर बेवकूफ कहा करते थे जिसके कारण मुझे अपने आप से भी घृणा होने लगी | इसी बीच मुझे चंपकवन के ही एक जानवर मोनू बंदर से मिलने का मौका मिला | मोनू बंदर की बातों ने मुझमे साहस और ऊर्जा का संचार किया उसने ही मुझे बताया कि तुम इस जंगल के सबसे समझदार जानवर हो | फिर क्या था मैं उसकी बातों में आ गया और उसने ही मुझे चिम्पू हिरण के स्वास्थ्य केंद्र जाने और झूठ बोलने के लिए प्रेरित किया | मुझे नहीं पता था कि वह मेरा इस्तेमाल चिम्पू हिरण को बदनाम करने के लिए कर रहा है | इसके बाद मोनू बंदर को सभा में बुलाया गया और उससे कड़ाई के साथ पूछा गया तो उसने बताया कि उसे चिम्पू हिरण की लोकप्रियता रास नहीं आ रही थी और वह चाहता था कि किसी तरह से चिम्पू हिरण का स्वास्थ्य केंद्र बंद हो जाए और उसके बाद वह खुद का एक स्वास्थ्य केंद्र खोल सके |
                                          चिपलू बिलौटे को अपने आप पर शर्म आ रही थी कि क्यों चम्पकवन के लोगे उसे बेवकूफ कहते थे शयद वे ठीक कहते थे | दूसरी ओर मोनू बंदर भी अपने आपको कोस रहा था | झबरू शेर ने दोनों चिपलू बिलौटे और मोनू बंदर को चिम्पू हिरण के स्वास्थ्य केंद्र में अगले छः माह तक मरीजों की सेवा करने की सजा सुनाई | जिसे दोनों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | जंगल के सभी जानवर जंगल के राजा झबरू शेर के फैसले से बहुत खुश हुए | अब पहले की तरह ही चिम्पू हिरण का स्वास्थ्य केंद्र लोगों की सेवा करने लगा |


अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

अनोखा प्रतिशोध – कहानी (अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम" )

 अनोखा प्रतिशोध – कहानी

मिश्रा जी और यादव जी का परिवार एक ही कॉलोनी में रहते थे और एक ही विभाग में कार्यरत थे | इन दोनों परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ सम्बन्ध थे | मिश्रा जी के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी | बेटा रोहित और बेटी मुस्कान | जबकि यादव जी के एक ही बेटा था पंकज | दोनों परिवार मध्यम वर्ग से संबंधित थे इसलिए दोनों परिवारों के बीच सम्बन्ध मधुर थे | एक दूसरे के घर जाना और साथ में सभी त्यौहार मनाना | पंकज और रोहित दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे |
                                                               एक दिन की बात है कि अचानक यादव जी के बेटे पंकज का एक्सीडेंट हो जाता है और उसे बचाने के लिए दो बोतल खून की आवश्यकता होती है | शहर के ब्लड बैंक में खून उपलब्ध नहीं होने से यादव जी को अपने बेटे पंकज की चिंता होने लगती है | खून की व्यवस्था न होने के कारण वे मिश्रा जी से निवेदन करते हैं कि वे अपने बेटे रोहित का दो बोतल खून दिलवा दें तो पंकज की जान बच जाए किन्तु मिश्रा जी ऐसा करने से मना कर देते हैं कि पंकज यदि खून देगा तो उसे कमजोरी हो जायेगी और उस कमजोरी को दूर करने में उसे महीनों लग जायेंगे | अब तो यादव जी को लगने लगा कि उनके बेटे पंकज का बचना नामुमकिन है | उनका कलेजा मुंह को आने लगता है | इसी बीच अस्पताल में कोई व्यक्ति उन्हें बताता है कि शहर में एक समाज सेवी संस्था है आप उनके पास जाइए शायद वे आपकी कोई मदद कर सकें | यादव जी अंतिम प्रयास में सफल हो जाते हैं और उस समाज सेवी संस्था की मदद से खून की व्यवस्था हो जाती है और पंकज की जान बच जाती है यादव जी उस संस्था का धन्यवाद करते हैं | यादव जी भी एक मानव होने का धर्म निभाते हुए उस समाज सेवी संस्था को सहायता राशि भेंट करते हैं ताकि जरूरतमंदों की सहायता हो सके |
                                                   यादव जी का अब मिश्रा जी और उसके परिवार के प्रति मोहभंग हो जाता है | वे अब मिश्रा जी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते | दूसरी ओर मिश्रा जी भी इस स्थिति में नहीं हैं कि वे यादव जी को मना सकें और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग सकें | वे चाहकर भी अब यादव जी से आँखें नहीं मिला पाते |
                                                    खैर दिन गुजरते रहते हैं और इस घटना को सभी भूल चुके होते हैं और सामान्य जीवन जीने लगते हैं | इसी बीच एक दिन मिश्रा जी के बेटे रोहित का एक्सीडेंट हो जाता है | और उसकी जान बचाने के लिए खून की जरूरत होती है | मिश्रा जी चाहकर भी अब यादव जी से मदद मांगने की स्थिति में नहीं थे | वे अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि कहीं से खून की जरूरत पूरी हो जाए | पर थक – हारकर वापस अस्पताल की ओर चल देते हैं इस उम्मीद में कि उनके बेटे रोहित की जान अब केवल और केवल परमात्मा ही बचा सकते हैं | मिश्रा जी जब अस्पताल पहुँचते हैं तो उनकी पत्नी उनसे कहती है कि खून की व्यवस्था हुई कि नहीं | इस सवाल पर मिश्रा जी कोई जवाब नहीं दे पाते और धड़ाम से जमीन पर गिर जाते हैं | तब मिश्रा जी की पत्नी उन्हें बताती है कि आप चिंता न करें हमारा रोहित ठीक है | यह सुनते ही मिश्रा जी की सांस में सांस आती है | वे कहते हैं कि किस पुण्यात्मा ने मेरे बच्चे की जान बचाई है | मैं उससे मिलना चाहता हूँ | पर मिश्रा जी की पत्नी कहती हैं कि जिसने भी हमारे बेटे रोहित की जान बचाई है वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते | पर मिश्रा जी जिद पर अड़ जाते हैं कि कुछ भी हो मुझे उस मानवता के पुजारी से मिलना ही है | अंत में अस्पताल के माध्यम से वे पता लगा ही लेते हैं और पता लगते ही स्वयं को गिरी हुई नज़रों से देखने लगते हैं | फिर भी वे यादव जी और उनके बेटे के चरणों में पड़कर माफ़ी मागने लगते हैं कि जब आपको मेरी आवश्यकता थी मैंने आपकी कोई मदद नहीं की | आज आपने मेरे बेटे का जीवन बचाकर मुझ पर और मेरे परिवार पर उपकार किया है | इस पर यादव जी कहते हैं कि सबका अपना – अपना तरीका होता है प्रतिशोध लेने का | मैंने भी अपना प्रतिशोध पूरा कर लिया आपके बेटे की जान बचाकर | मेरा प्रतिशोध लेने का यही तरीका है | यादव जी कहते हैं कि मुझे आपसे कोई गिला – शिकवा नहीं | आपका बेटा रोहित भी मेरे बेटे पंकज की तरह है | मैं उन दोनों में भेद नहीं कर सकता |
दोनों परिवार पुनः एक साथ ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगते हैं |

अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"