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Thursday, 29 October 2015
Wednesday, 28 October 2015
आस्तिकता ( एक विचार ) द्वारा अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का
आस्तिकता
द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का
आस्तिक भाव का
होना अर्थात परमात्मा में विश्वास होना | यह विश्वास परमात्मा के दोनों स्वरूपों
में हो सकता है | चाहे वह निराकार के रूप में हो या फिर साकार रूप में | कुछ लोगों
का निराकार ब्रह्म में भी विश्वास है किन्तु ऐसे सामाजिक एवं धार्मिक प्राणियों की
सख्या इस धरती पर ज्यादा नहीं है | जितनी की साकार ब्रह्म में विश्वास करने वाले |
विभिन्न युगों में दुनिया में अलग – अलग क्षेत्रों में जो भी असाधारण मानव हुए हैं
उनके सद्कर्मों एवं धर्म की स्थापना के लिए , आदर्श स्थापना के लिए, संस्कृति व
संस्कारों के सृजन के लिए , मानवता के लिए उनके द्वारा किये गए प्रयासों के आधार
पर ही उन्हें असाधारण मानव या भगवान् की संज्ञा देकर उनके ऋणी होकर उनके द्वारा
स्थापित सिद्धांतों का पालन करते हैं | आस्तिक भाव जागृत करने में सदियों से चले आ
रहे हमारे धार्मिक ग्रंथों का भी महत्वपूर्ण योगदान है जो कि इन महान विभूतियों के
सद्कर्मों के फलस्वरूप रचे गए | पीढ़ियों से चले आ रहीं परम्परायें और समाज में
व्याप्त सद्चरित्र ,मनुष्य को प्रेरित
करते हैं कि वे साकार या निराकार ब्रह्म जिसमे भी श्रद्धा रखते हैं उनके
सिद्धांतों को अपने जीवन का आधार बनाकर अपने कल्याण के साथ – साथ समाज कल्याण और
विश्व कल्याण हित सोच सकें | धार्मिक मान्यताओं , सिद्धांतों ने मानव को हमेशा मानव बने रहने की
ओर प्रेरित किया है |
पूर्ण मानव हमेशा अपने आपको
परमात्मा को पूर्ण रूप से समर्पित किये रहते हैं | साकार ब्रह्म में स्थिति होने
से परमात्मा के साक्षात रूप के दर्शन होने संभावित हो जाते हैं | जबकि निराकार
ब्रह्म में परमात्म तत्व किस रूप में अपना साक्षात्कार कराते हैं इसका भान होना
थोड़ा कठिन होता है | वैसे तो हम सब यही मानते हैं कि परमात्म तत्व सभी प्राणियों
के ह्रदय में स्थित होता है | वह किस रूप में , कब, कहाँ एक असाधारण मानव के रूप
में स्वयं का आभास कराये यह कहा नहीं जा सकता | मनुष्य या तो अपने पिछले जन्म के कर्म के फलस्वरूप
अधोगति को प्राप्त होता है या फिर वर्तमान जन्म के कर्मों के फलस्वरूप जो कि पूर्व
जन्म के कर्मों से प्रभावित होकर किये जाते हैं जिसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता |
मनुष्य को चाहिए कि वह संयमशील हो, कर्तव्यपरायण हो, धार्मिक संस्कारों से
परिपूर्ण हो , स्वयं के उद्धार हित कर्म करे | साथ ही मानव कल्याण, समाज कल्याण व
राष्ट्र कल्याण हित कार्य करे | आस्तिकता मनुष्य को परमात्मा से जोडती है | मनुष्य
सद्कर्मों के माध्यम से स्वयं को बन्धनों से मुक्त कर परमात्मा की ओर मुखरित करता
है | और उस परमात्मा की कृपा का पात्र होकर अपने जीवन को चरितार्थ करता है और
सामाजिक प्राणी के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करता है | आस्तिक विचारों से
परिपूर्ण मानव , समाज में आदर्श स्थापित करते हैं | इनके विचारों से प्रेरित होकर
अन्य मनुष्य स्वयं को भी इसी मार्ग पर प्रस्थित करने का प्रयास करते हैं |
आस्तिकता से परिपूर्ण चरित्र समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं | आस्तिक भाव
से पूरी तरह से समर्पित चरित्र कुछ ख़ास लक्षणों से युक्त जीवन जीते हैं | जैसे
सत्य भाषण , अहिंसा परमो धर्म, सधाचार, धर्म के लिए कष्ट सहन करना , जीवन पर्यंत
सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत का पालन करना, प्राणियों के कल्याणनार्थ कार्य
करना , भक्ति में लीं रहना, समाज कल्याण हित कार्य करना, धर्म हित कार्य करना आदि
| वर्तमान आधुनिक परिस्थितियों में ऐसे चरित्र ढूंढना समुद्र में से मोती ढूंढना के
बराबर है | आज के असामाजिक परिवेश में
स्वयं को आस्तिकता से परिपूर्ण कर ही हम अपना इस संसार से उद्धार कर सकते हैं |
आस्तिकता ही मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है |
Tuesday, 13 October 2015
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