सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?
सत्य पथ अब
पथ विहीन
क्यों ?
सत्य राह
चंचल हुई
क्यों
सत्यमार्ग
सूझता नहीं
क्यों
असत्य सत्य
पर
भारी है
क्यों ?
कर्म धरा अब
चरित्र विहीन
महसूस हो रही
शोर्टकट लगता
अब प्यारा
क्यों ?
कर्महीन
महसूस होता
हर एक चरित्र
क्यों ?
नारी अपनी
व्यथा पर
समाज में
रोती है
क्यों ?
पुरुष समाज
में
अपनी छवि
खोता सा
दिखता है
क्यों
धर्म पथ पर
काम पथ का
प्रभाव पड़ता
सा
दिखता है
क्यों ?
शर्मिंदगी की
घबराहट
अब अनैतिक
चरित्रों के
चहरे पर
झलकती नहीं
है क्यों ?
धर्म्कांड व
कर्मकांड
के नाम पर
परदे के पीछे
काम काण्ड की
महिमा गति
पकड़ रही है
क्यों ?
फूलों में अब
पहली सी
खुशबू रही
नहीं है क्यों ?
उलझा – उलझा
परेशान सा
हर एक चरित्र
महसूस
हो रहा है
क्यों ?
मानवता
गली – गली
आज शर्मशार
हो रही है
क्यों ?
आज नारी
हर दूसरे चौक
पर
बलात्कार का
शिकार
हो रही है
क्यों ?
युवा पीढ़ी
आज की
पथभ्रष्ट
हो रही है
क्यों ?
समाज में
आज
वृद्ध
आश्रमों की
संख्या में
बढ़ोत्तरी
हो रही है
क्यों ?
पल –पल होती
लूट
और हत्याओं
की
घटनाओं से
मानव रूबरू
हो
रहा है क्यों
?
आज प्रकृति
अपने विकराल
रूप में
हमारे सामने
आ खड़ी हुई है
क्यों ?
सुनामी –
कैटरीना
भूकंप ,
ज्वालामुखी
के शिकार
मानव हो रहे
है क्यों ?
वर्तमान
सभ्यता
आज
अपने अंत के
द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?
द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?
द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय संगठन