शिक्षा का निजीकरण
क्या सुनहरे भविष्य
की कल्पना मात्र ?
या
सपनों को साकार करने
का श्रेष्ठ माध्यम
द्वारा
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय
फाजिल्का
शिक्षा का निजीकरण :- शिक्षा का निजीकरण
अर्थात शिक्षण संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपना | शिक्षा का निजीकरण अर्थात शिक्षण संस्थाओं का
निजीकरण के साथ – साथ उनका व्यवसायीकरण | प्रश्न
यहाँ यह उठता है कि भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में शिक्षण
संस्थाओं के निजीकरण की आवश्यकता महसूस क्यों की गयी | क्या स्वतंत्रता प्राप्ति
पश्चात् हमने शिक्षा के विकास को प्राथमिकता नहीं दी या हम स्वतंत्रता पश्चात् इसी
विषय में उलझे रहे कि देश की जनता की विभाजन पश्चात् की सामान्य जरूरतों जैसे रोटी
, कपड़ा और मकान आदि जरूरतों को पूरा किया जाए या फिर शिक्षा जैसे विषय को गंभीरता
से लिया जाए |
आज
की वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के बीच यह प्रश्न एक ज्वलंत समस्या बनकर हमारे सामने
आ रहा है कि शिक्षा के निजीकरण ने हमको क्या दिया और क्या इसके माध्यम से सुनहरे
भविष्य की कल्पना की जा सकती है और क्या यह हमारे सपनों को साकार करने का
सर्वश्रेष्ठ माध्यम है |
शिक्षा संस्थानों के
निजीकरण किये जाने के प्रमुख कारण
1.
जनसंख्या में वृद्धि |
2.
सरकारी शिक्षा प्रणाली में खामियां |
3.
शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप |
4.
सरकारी पैसे का दुरुपयोग |
5.
आधारभूत ढाँचे का अभाव |
6.
सुविधाओं का अभाव |
7.
धन का अभाव |
8.
पाट्यक्रम में राष्ट्रीय स्तर पर असमानता |
9.
शिक्षा कमीशनों (मुद्लिअर कमीशन , राधकृष्णन कमीशन एवं कोठारी
कमीशन ) की अनुशंसाओं का अंशतः पालन होना न कि पूर्णतया पालन |
10.
सरकारी शिक्षा संस्थानों में शिक्षा के मानकीकरण का अभाव |
11.
देश की जनता का सरकारी शिक्षण संस्थाओं के प्रति आकर्षण व विश्वास
का अभाव |
12.
सरकारी शिक्षण संस्थाओं में आधुनिक शिक्षा पद्दति का अभाव |
13.
आध्यापन कार्य में गुणवत्ता का अभाव |
14.
आधुनिक शिक्षा तकनीक का अभाव |
15.
सेवा दौरान परीक्षण कार्यक्रमों की कमी |
16.
पारितोषक / पुरस्कारों का अभाव |
17.
कर्मचारी कल्याण नीतियों
का अभाव |
18.
अकुशल प्रबंध संचालन |
20.
समाज सेवा जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों का अभाव |
21.
भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को पोषित करने में आज की शिक्षा
पद्धति विफल |
22.
शिक्षकों का अन्य कार्यों में शिक्षकों का इस्तेमाल (जैसे चुनाव ,
पल्स पोलियो इत्यादि) में करने से शिक्षण प्रक्रिया बाधित |
23.
शिक्षा को पेशा समझना न कि सामाजिक जिम्मेदारी |
उपरोक्त बिन्दुओं का
गहन अध्ययन किया जाए तो हम यह पाते हैं कि प्रशासनिक व्यवस्था में सुदृढ़ता का अभाव
व नीतियों का सही कार्यान्वयन न किये जाने से आज सरकारी शैक्षिक संस्थाओं की
स्थिति चरमरा गई है और लोग निजी संस्थाओं की और पलायन करने लगे हैं | मुख्य समस्या
जो देखने में आई है यह है कि संसाधनों का
अभाव सरकारी शैक्षिक संस्थाओं को निजी संस्थाओं से अलग करता है |
क्या निजी शैक्षिक संस्थायें शिक्षा के उद्देश्यों को
प्राप्त करने में सफल रही हैं
इस प्रश्न का उत्तर इतना आसान भी
नहीं है | कि निजी शिक्षिक संस्थायें शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में
सफल रही हैं या नहीं | “ऊंची दुकान फीका पकवान “ यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी |
निजी शैक्षिक संस्थाओं की कोशिश होती है कि वे अपनी शिक्षा रुपी दुकान को आधुनिक
ढाँचे में सजा – संवारकर लोगों के बीच पेश करें ताकि इस आकर्षण में आकर लोग उनकी ओर आकर्षित
होने लगें | आकर्षक भवन , आकर्षक सुविधायें ,आधुनिक तकनीक , खेलकूद व्यवस्थायें
जैसी सुविधाओं का प्रलोभन देकर जनता को अपनी और आकर्षित कररना ये सभी उपाय आज के
समय में चलन में आ गए हैं | सरकारी शिक्षण संस्थायें इन आकर्षणों से मुकाबला नहीं
कर पातीं इसलिए उनके प्रति लोगों में विशेष लगाव नहीं है | निजी शैक्षिक संस्थायें जहां तक मुझे लगता है लोगों पर अपना प्रभाव
तो छोड़ती हैं किन्तु उनकी शिक्षक चयन प्रक्रिया की और एक बार नज़र घुमायें तो हम
पाते हैं कि कम अशिक्षित लोगों को शिक्षण प्रक्रिया का हिस्सा बनाना एक विशेष
समस्या को जन्म देता है | कम पैसे देकर ये अच्छी शिक्षा की कल्पना मात्र करते हैं
| जिस कार्य के लोगों को पच्चीस हज़ार रुपये मिलना चाहिए वहां ये मात्र पांच से छह
हज़ार रुपये में ही अपना काम निकालना पसंद करते हैं जो कि एक प्रकार का सामाजिक
शोषण है | साथ ही हम यह भी पाते हैं कि इन
संस्थाओं में जो शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं उन्हें अध्यापन कार्य
की आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल की जानकारी नहीं होती है साथ ही सेवा अवधि दौरान प्रशिक्षण
कार्यक्रमों का अभाव होने से शिक्षकों में वर्तमान शिक्षण तकनीक व पद्दतियों की
जानकारी का अभाव उनकी शिक्षण प्रक्रिया पर बुरा
असर डालता है |
मैं यहाँ उन
निजी शिक्षा संस्थानों की बात कर रहा हूँ जो कुछ हद तक मानकों का पालन कर अपनी
संस्थाओं को जीवंत बनाए हुए हैं | कहीं – कहीं तो मकानों के भीतर गली के बीच में
बगैर खेलकूद प्रांगण के भी निजी विद्यालय व कॉलेज कार्यरत हैं जो बच्चों के
स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं | एक – एक कक्षा में 80 – 80 बच्चे अध्ययन कर
रहे हैं जो की निंदनीय है |मुख्य समस्या तो यह है कि जिन निजी शिक्षा संस्थानों के
अपने भवन नहीं होते, खेलकूद के लिए मैदान नहीं होते , पर्याप्त संसाधन नहीं होते
फिर भी उन्हें इन संस्थानों को चलाने का लाइसेंस किस तरह मिल जाता है यह प्रश्न
हमारे मन में बार–बार आता है |
निजी शिक्षा संस्थानों में कमियाँ
निजी शिक्षण संस्थानों में
देखा जाए तो कमियों का अभाव नहीं है | इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य लोगों को
विशेष तौर पर समाज के धनाड्य वर्ग को अपनी और आकर्षित करना होता है दूसरी और इनकी
इस व्यक्तिगत सोच ने समाज के गरीब वर्ग के मन में हें भावना जैसे विचार को जन्म
दिया है | आइये इन संस्थाओं कि कुछ मुख्य कमियों की और नज़र डालें :-
1.ज्यादातर निजी
शिक्षण संस्थाओं के पास स्वयं के भवन नहीं हैं और न ही खेलकूद के लिए पर्याप्त
स्थान |
2.आधुनिक शिक्षा तकनीक एवं संसाधनों
का अभाव |
3.पर्याप्त आधारभूत ढाँचे का अभाव |
4.शिक्षित एवं कुशल शिक्षकों का अभाव |
5.सेवाकालीन प्रशिक्षण शिविरों का अभाव |
6.निजी शिक्षण संस्थानों का
पेशेवर होना इन्हें व्यावसायिक गतिविधियों में लिप्त करता है |
7.शिक्षा नीति मानकों का उल्लंघन
|
8.बच्चों की सुरक्षा , भवन
सुरक्षा संसाधनों का अभाव |
9.कुशल प्रबंधन का अभाव |
10.स्काउट एवं गाइड्स , एन सी सी
जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों का अभाव |
11.समाज सेवा को शिक्षा से न
जोड़ना |
12. शिक्षा
जैसे पावन उद्देश्य के प्रति समर्पण की भावना का अभाव |
13.बच्चों के सर्वांगीण विकास की
उपेक्षा कर व्यक्तिगत हितों को ज्यादा महत्त्व देना |
14. शिक्षण प्रक्रिया को बंद
कमरों में ही संपादित करना |
15.Educational
tours का
अभाव |
16. शिक्षा के अधिकार
नियमों का उल्लंघन |
17. बच्चों के बीच बेदभाव करना |
18. उच्च वर्ग के बच्चों पर विशेष ध्यान देना |
19. अपनी छवि बनाए रखने हेतु नियमों का उल्लंघन करना |
20.अच्छे स्तर के पुस्तकालयों का अभाव |
21. पुनः प्रवेश के नाम पर आर्थिक शोषण |
उपरोक्त बिंदुओं
पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि निजी शिक्षण संस्थाओं की स्थिति सोचनीय है |
-: उपाय :-
शिक्षण संस्थाओं का निजीकरण इस हद तक हो सकता है इसके लिए निम्न
उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं :-
1.आधारभूत ढाँचे वाली शिक्षण संस्थाओं को अनुमति दी जाए |
2.मानकों / नीति का पूर्णतः एवं सही तरीके से पालन किया आये |
3.शिक्षण संस्थाओं को
राजनितिक हस्तक्षेप से दूर रखा जाए |
4.शिक्षा के अधिकार का अक्षरशः पालन किया जाए |
5.शिक्षा मानकों के आधार पर ही
शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए |
6.मानकों / नीति के आधार पर ही
निजी शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की मासिक तनख्वाह
सुनिश्चित की जाए |
7.बच्चों की सुरक्षा पर विशेष
ध्यान दिया जाए |
8.भवन सुरक्षा मानकों का पालन
किया जाए |
9.अग्निशमन यंत्रों का प्रावधान
बाध्य किया जाए |
10.कक्षावार बच्चों की संख्या
सुनिश्चित की जाए |
11.बच्चों की छात्रवृत्ति पर
विशेष ध्यान दिया जाए |
12.निम्न आय वर्ग के बच्चों को
मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था निजी शिक्षण संस्थानों में बाध्य की जाए |
13.पाठ्यक्रम में एकरूपता लाई जाये
|
14.बस्ते के बोझ को घटाया जाए
अवांछनीय पुस्तकें बच्चों पर न लादी जाएँ |
15. अच्छे व सस्ते प्रकाशन की
पुस्तकें बच्चों को उपलब्ध कराई जाएँ |
16.बच्चों की यूनिफार्म व
पाठ्क्रम परिवर्तन को गंभीरता से लिया जाए | बार – बार ये परिवर्तित न किये जाएँ |
17.दूर – दराज इलाकों में सरकारी
शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाए |
समाज सेवा जैसे महत्वपूर्ण विषयों
को शिक्षा के साथ जोड़ा जाए |
उपसंहार :- उपरोक्त सभी बातों का
गहन अध्ययन करने के पश्चात हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आज शिक्षा ग्रहण करना
इतना आसान कार्य नहीं है | कोशिश यह की जाए कि सभी सरकारी शिक्षा संस्थानों को वर्तमान शिक्षा
नीति का अमलीजामा पहनाकर संसाधनों से परिपूर्ण किया जाए | शिक्षा जैसे पावन विचार
को गंभीरता से लिया जाये |
शिक्षा
जो कि देश की नींव के बीज बोता है उसके प्रति इस प्रकार का उदासीन रवैया कतई
बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए | बच्चे देश का भविष्य होते हैं और उनके प्रति
हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है | कुछ ऐसे प्रयास किये जाएँ जिनके माध्यम से हम
निजी शिक्षा संस्थानों को शिक्षा जैसे पावन अभियान से पूरी तरह से जोड़ सकें और ऐसी
निजी शिक्षण संस्थानों पर नकेल कसें जो कि शिक्षा नीति के मानदंडों को पूरा नहीं
करतीं और न ही बच्चों के भविष्य के प्रति जागरूक हैं |
शिक्षा के अधिकार
अधिनियम का पालन हो यह सुनिश्चित किया जाए ताकि उसका लाभ जरूरतमंदों को मिल सके | समय
– समय पर शिक्षाविदों से राय ली जाती रहे और शिक्षा संस्थानों चाहे वो निजी हों या
सरकारी हों उनके विकास के प्रयास किये जाते रहें | विकासशील देशों से होड़ न करते हुए देश की
वर्तमान परिस्थितियों एवं संरचना को देखते हुए नीतियों को तैयार किया जाए और उनके
पालन के लिए कड़े नियम बनाए जाएँ | कोशिश इस बात की हो कि शिक्षा जैसे गंभीर विषय
के प्रति उदासीनता न दिखाई जाए और इस विषय को गंभीरता से लेते हुए वर्तमान शिक्षा
प्रणाली की खामियों को दूर किया जाए और एक स्वस्थ वातावरण निजी एवं सरकारी शिक्षण
संस्थानों में निर्मित किया जाए जिससे शिक्षा के पावन उद्देश्यों को प्राप्त किया
जा सके और देश को सही दिशा मिल सके |
इस लेख को पढ़ने के
लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद
Bhut shandar nibhandh.
ReplyDeleteSir u are great.
I m also a pupil teacher.
ReplyDeleteVery nice sir ji... It helped me a lot
ReplyDeleteGood one ... Sir
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteYour speech is very knowledgeable
ReplyDeleteThank you so much
आपके बहुमूल्य विचारों को जानकार मुझे प्रसन्नता हुई | मैं आप सभी का बहुत - बहुत आभारी हूँ | आप सबके विचार मुझे प्रेरणा देते हैं |
ReplyDeleteशुक्रिया |
Very useful for B.ed...thank you Sir
ReplyDeleteThanks for this great speech
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