Thursday 25 June 2015

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य हमने क्या खोया और पाया ? -- द्वारा -- श्री अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

वर्तमान सामाजिक परिदृश्य
हमने क्या खोया और पाया ?

द्वारा

  अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सीमा सुरक्षा बल
फाजिल्का

आज के वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की ओर एक नज़र डालें  और हम ये सोचें कि हमसे कोई भूल हुई है क्या ? पर्यावरण के साथ – साथ हमने अपने सामाजिक परिवेश के साथ कोई अन्याय किया है क्या ? हमारी आवश्यकताओं ने , हमारी महत्वाकांक्षाओं ने कुछ ऐसी विषम परिस्थितियों को जन्म दिया है जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं | आज जिस वातावरण में हम जी रहे हैं क्या उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं या फिर कोई और ? हम सोचें कि ऐसा क्या हुआ जो आज हम चिंतन के इस भयावह दौर से गुजर रहे हैं ? लोगों में बढ़ती असुरक्षा  की भावना और न्यायपालिका पर से उठता विश्वास आज हमें सोचने को मजबूर कर रहा है | समाज के ऐसे रूप की कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी जहां लडकिया असुरक्षित हैं , युवा पीढ़ी “ थोड़ा जियो खुल के   जियो “   ,
“ डर के बाद जीत “  के सिद्धांत पर जिन्दगी जी रहे हैं | “स्वाभिमान” शब्द को ग्रहण लग गया है | नैतिकता , सामाजिकता , मानवता , सहृदयता , सम्मान , मौलिकता जैसे महत्वपूर्ण विषय अब ओछे प्रतीत होने लगे हैं | कोई इस बात पर शर्म महसूस नहीं करता कि उसके द्वारा अनैतिक कार्य हो गया है | आइये देखें हमारे अनैतिक प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमने क्या खोया और पाया :-
हमने क्या खोया
जो कुछ हम बोते हैं वही काटते हैं | इस बात को हमने चरितार्थ किया है अपने कार्यकलापों से और अनैतिक गतिविधियों से | आइये हम देखें कि हमने वास्तव में क्या खोया :-
1.     सामाजिकता
2.     मानवता
3.     सहृदयता
4.     संवेदनशीलता
5.     धार्मिकता
6.     संस्कृतिक एकता  
7.     संस्कारों की पूँजी  
8.     आत्मीयता
9.     बुजुर्गों का सम्मान
10.     आध्यात्मिक चिंतन
11.     नैतिक मूल्य
12.     मरणोपरांत का स्वर्गलोक
13.     मोक्ष – उद्धार के प्रयास
14.     रिश्तों की संवेदनशीलता
15.     एक दूसरे के सम्मान की परम्परा
16.     सत्य का साथ
17.     प्रकृति का आलिंगन
18.     पुण्य आत्माओं का आशीर्वाद
19.     विश्वसनीयता
20.     संकल्प
21.     आस्तिकता
22.     आत्मसम्मान
23.     औपचारिकता
24.     भाईचारा
25.     आत्म सम्मान
26.     आध्यात्मिक ऊर्जा
27.     परमात्मा की गोद
28.     आत्मविश्वास

हमने क्या पाया
आइये दूसरी और हम देखें कि हमारे द्वारा किये गए अनैतिक प्रयासों ने हमें क्या कुछ दिया :-
1.     कुंठित विचारों की श्रृंखला
2.     केवल वैज्ञानिक विचारों का पुलिंदा
3.     असामाजिकता
4.     व्यक्तिगत अवसरवादिता
5.     भौतिक सुख में जीवन का चरम सुख खोजने का असफल प्रयास
6.     आधुनिक विचारों का धार्मिकता , सामाजिकता , संस्कृति व संस्कारों पर कुठाराघात
7.     आदर्शों को दरकिनार करने का साहस
8.     पुण्य आत्माओं को लज्जित करने का वैज्ञानिक विचार
9.     व्यक्तिवाद को प्रमुखता एवं राष्ट्रवाद को नगण्य समझने की भूल
10.      प्रदूषित पर्यावरण
11.      सामाजिकता, धार्मिकता पर वैज्ञानिक विचारों का प्रभाव
12.      चीरहरण की घटनाएं
13.      प्रदूषित सामाजिक पर्यावरण
14.      स्वयं के आत्म सम्मान से समझौता
15.      रिश्तों का अभाव
16.      परमेश्वर से दूरी
17.      आध्यात्मिकता से दूरी
18.      सामाजिकता में अवसरवादिता
19.      प्रदूषित सामाजिक पर्यावरण
20.      भौतिक सुख में चरम सुख ढूँढने का प्रयास
21.      अनैतिक विचारों का पुलिंदा
22.      अमानवीय चरित्रों का निर्माण


उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान से देखने एवं विश्लेषण करने पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आज हम जिस युग में , जिस पर्यावरण में, जिस सामाजिक व्यवस्था के बीच जी रहे हैं वहां मानव के मानव होने का तनिक भी भान नहीं होता | एक दूसरे को नोच खाना चाहते हैं | अपने अस्तित्व के लिए दूसरे के अस्तित्व को नगण्य समझ बैठते हैं | हमारे मानव होने का हमें आभास नहीं है और न ही हम जानना चाहते हैं कि आखिर किस प्रयोजन के साथ हम इस धरती पर आये | उस परमपूज्य परमात्मा को हमसे क्या अपेक्षा है | क्या हम उसकी अपेक्षा पर खरे उतरे या फिर हम यूं ही जिए चले जा रहे हैं | समय अभी भी हाथ से छूता नहीं है आइये प्रण करें कि हम एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ पर्यावरण, आध्यात्मिक विचारों के साथ इस धरती पर स्वयं को उस परमात्मा को समर्पित करेंगे | मानव हित , मानव समाज हित कार्य करेंगे और अंत तक उस परमपूज्य परमात्मा की शरण होकर अपना उद्धार करेंगे | 

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