Thursday 15 September 2016

जीवन में “ चयन “ की भूमिका जीवन के उत्कर्ष और अवनति का मापदंड द्वारा अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

जीवन में “ चयन “ की भूमिका
जीवन के उत्कर्ष और अवनति का मापदंड

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

जीवन में चयन , मानव की स्वयं की सोच का परिणाम का परिणाम है |   जिसकी जैसी  अभिलाषा , आकांक्षा , उसी के अनुरूप मार्ग का चयन | कभी – कभी अभिलाषा या आकांक्षा सकारात्मक सोच का परिणाम होती है तो कभी नकारात्मक सोच का परिणाम | अर्थात मंजिल या उद्देश्य की प्राप्ति का मार्ग हमेशा सकारात्मक सोच के माध्यम से गुजरे ,यह आवश्यक नहीं | “शॉर्टकट” यह आज की पीढ़ी का अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का सबसे सरल व सुगम उपाय बनकर सामने आया है |  यह आज की युवा पीढ़ी के “चयन “ का परिणाम है जो उसे कुमार्ग की ओर धकेल रहा है |

                  भगवान् कृष्ण स्वयं कर्ण को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे सूर्यपुत्र कर्ण तेरे जीवन के अंत की जो परिणति है वह तेरे “चयन” का परिणाम है | परमात्मा किसी व्यक्ति का चयन नहीं करता | मनुष्य यदि परमात्मा का चयन कर उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है तो वह केवल और केवल सत्मार्ग की ओर मुखरित होता है उसे कोई भटका नहीं सकता | वह स्वयं का उद्धार करने में सक्षम हो जाता है | अर्थात यदि तूने मेरा “चयन” किया होता तो तू आज अधर्मी दुर्योधन के साथ युद्ध में खड़ा नहीं होता |

            जीवन का सफल होना या नहीं होना “ चयन “ का परिणाम है | चयन ऐसा हो जो जीवन के लक्ष्य की पूर्ति का आधार हो सके न कि ले चले अवनति की ओर | मनुष्य को चाहिए कि वह “चयन” जो कि एक ऐसी स्थिति है जहां मनुष्य के जीवन का हर पल इस प्रक्रिया से होकर गुजरता है | हर पल हर क्षण परिस्थिति अनुसार “चयन” करना ताकि कुछ ऐसा हो सके जो हमें दिशा दे सके | सत्मार्ग पर ले जा सके | यह तभी संभव है जब “चयन” की प्रक्रिया के समय आपका मन स्थिर हो , सकारात्मक सोच से परिपूर्ण हो | क्योंकि मन जो प्राप्त करता है उसी विचार को प्रतिफल के रूप में उत्सर्जित करता है | जैसे विचार आप अपने मन मस्तिस्क में पिरोते जाते हैं उसी के प्रतिफल के रूप में आपको वैसे ही परिणाम प्राप्त होते हैं |

                  इस विषय में यदि बारीकी से देखा जाए तो माता – पिता बच्चों के जीवन में विशेष भूमिका निभा सकते हैं | वे स्वयं उन मार्गो का चयन करें जो बच्चे के जीवन में संस्कार बन उसे प्रफुल्लित कर सके | माता – पिता बच्चों को सही और गलत का भेद बताने में यदि सफल हो जाते हैं तो समझो बच्चों के जीवन में “चयन” की प्रक्रिया के दौरान कोई भी परेशानी नहीं होगी | बच्चों को यह बताया जाए कि हमारा जीवन उस परमात्मा की देन है और वही हमारा पालनहार है | हमें ही वह मुसीबतों से बचाता है | अतः हम अपने जीवन में सबसे पहले “परमात्मा “ को स्थान दें जो हमारे जीवन को सही दिशा की ओर ले जाने में हमारी मदद करे | हम उस परमात्मा और उसके बन्दों के प्रति सद्भावना बनाए रखें तो हमारा जीवन सफल हो  सकता है |

                        जीवन को एक सफल चयन की प्रक्रिया से गुजारने के लिए आवश्यक है कि हम उन चरित्रों के जीवन का आंकलन करें जिन्होंने सकारात्मक सोच के साथ उस मार्ग का चयन किया जिसने उन्हें समाज में एक सुधारक, विचारक, शिक्षाविद, सफल चरित्र, एक सफल सामाजिक कार्यकर्ता, दार्शनिक आदि के रूप में स्थापित करने में  उनकी मदद की | ऐसा क्या अलग उनका “चयन” रहा जिसने उन्हें दूसरों की निगाहों में आदर्श चरित्र के रूप में स्थापित किया |  बच्चों के मन में बचपन से ही ऐसे चरित्रों के प्रति सकारात्मक सोच का विस्तार करना जरूरी है | जो उन्हें अपने भविष्य को, अपने चरित्र को सुदृढ़ करने में उनकी मदद करे | बच्चों के भीतर एक ऐसी सोच का विस्तार करना होगा जिसके माध्यम से बच्चे यह समझ जाएँ कि जीवन एक अमूल्य धरोहर है जिसे किसी भी परिस्थिति में बचाकर रखना आवश्यक है और समाज हित, देश  हित, धर्म हित उसका उपयोग  करना है |

                        जीवन में “ सत्य “ का चयन करें | स्वयं को सकारात्मक सोच से ओतप्रोत बनाए रखें ताकि आप सत्मार्ग पर चलते हुए स्वयं को तो जीवंत बना ही सकते हैं साथ ही आप दूसरों के जीवन को भी दिशा दे सकते हैं आदर्श चरित्र बनकर | समाज का कल्याण व राष्ट्र का हित इन्हीं आदर्श चरित्रों पर निर्भर होता है जो अपने कार्यों से, प्रयासों से समाज को , धर्म को, संस्कृति व संस्कारों को दिशा देकर स्वस्थ समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सकते हैं |

                        आपसे अनुरोध है कि आप “ चयन “ के समय सकारात्मक सोच के साथ निर्णय लें और अपने जीवन को संवारें |



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