Monday, 28 October 2013

सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?

सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?

सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?
सत्य राह चंचल हुई क्यों ?

सत्यमार्ग सूझता नहीं क्यों ?
असत्य सत्य पर भारी है क्यों ?

कर्म धरा अब चरित्र विहीन महसूस हो रही
शोर्टकट लगता अब प्यारा क्यों ?

कर्महीन महसूस होता  हर एक चरित्र क्यों ?
नारी अपनी व्यथा पर समाज में रोती है क्यों ?

पुरुष समाज में अपनी छवि
खोता सा दिखता है क्यों ?

धर्म पथ पर काम पथ का प्रभाव
पड़ता सा दिखता है क्यों ?

शर्मिंदगी की घबराहट अब अनैतिक चरित्रों के चहरे पर
झलकती नहीं है क्यों ?

धर्म्कांड व कर्मकांड के नाम पर
परदे के पीछे काम काण्ड की

महिमा गति पकड़ रही है क्यों ?
फूलों में अब पहली सी खुशबू रही नहीं है क्यों ?

उलझा उलझा परेशान सा
हर एक चरित्र महसूस हो रहा है क्यों ?

मानवता गली गली आज शर्मशार हो रही है क्यों ?
आज नारी हर दूसरे चौक पर

बलात्कार का शिकार हो रही है क्यों ?
युवा पीढ़ी आज की पथभ्रष्ट हो रही है क्यों ?

समाज में आज वृद्ध आश्रमों की
संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है क्यों ?

पल पल होती लूट और हत्याओं की
घटनाओं से मानव रूबरू हो रहा है क्यों ?

आज प्रकृति अपने विकराल रूप में
हमारे सामने आ खड़ी हुई है क्यों ?

सुनामी कैटरीना भूकंप , ज्वालामुखी
के शिकार मानव हो रहे है क्यों ?

वर्तमान सभ्यता आज
अपने अंत के द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?

द्वार पर खड़ी  हुई है क्यों ?
द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष

केंद्रीय विद्यालय संगठन

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