काफिले
रुकते नहीं
काफिले
रुकते नहीं
आंधियां
चलती रहें
चीरकर
तूफ़ान को
काफिले
बढते रहे
मंजिलों
की चाह मे
आये
जो भी राह मे
पत्थरों
की ठोकर से
काफिले
रुकते नहीं
पर्वतों
की सी ऊँचाई हो
सागर
सी गहराई हो
परवाह
मौजों की करते नहीं
काफिले
रुकते नहीं
आँखों
का सपना
जब
हो मंजिल
पैर
रुकते नहीं
काफिले
झुकते नहीं
बिजली
की सी गर्जना हो
शेर
की सी दहाड़ हो
सागर
विकरा हो
काफिले
डरते नहीं
काफिले
रुकते नहीं
काफिले
रुकते नहीं
No comments:
Post a Comment