Friday, 3 January 2014

काफिले रुकते नहीं


काफिले रुकते नहीं

काफिले रुकते नहीं
आंधियां चलती रहें
चीरकर तूफ़ान को
काफिले बढते रहे

मंजिलों की चाह मे
आये जो भी राह मे  
पत्थरों की ठोकर से
काफिले रुकते नहीं

पर्वतों की सी ऊँचाई हो
सागर सी गहराई हो
परवाह मौजों की करते नहीं
काफिले रुकते नहीं

आँखों का सपना
जब हो मंजिल
पैर रुकते नहीं
काफिले झुकते नहीं

बिजली की सी गर्जना हो
शेर की सी दहाड़ हो
सागर विकरा हो
काफिले डरते नहीं

काफिले रुकते नहीं 
काफिले रुकते नहीं

 द्वारा :- अनिल कुमार गुप्ता 
            पुस्तकालय अध्यक्ष
            केन्द्रीय विद्यालय फाजिल्का


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