Friday, 24 August 2012

संस्कृति को बचायें-


संस्कृति को बचायें-


. . समाज की संरचना में कई तरह की सूक्ष्म बिन्दुओं का योगदान रहता है. इन सूक्ष्म बिन्दुओं को हटा देने पर समाज की संरचना ध्वस्त हो जाती है. समाज में एडल्ट कही जाने वाली वस्तुएं समाज के संरचना काल से ही मौजूद है. किसी की कोई आपत्ति नहीं रही है. लेकिन इसकी मर्यादा का ख्याल समाज ने रखा. कौन से कृत्य कब करना है, और कहा करना है, इसकी एक सीमा रेखा खीच दी गई है. समाज के मान्यता के दायरे में रह कर किया गया कार्य मर्यादित है, और दायरे से बहार अमर्यादित. दो हम उम्र दोस्त अकेले में जो बाते कर लेते हैं, वही बात अपने अभिभावक के सामने नहीं कर पाते. पति-पत्नी की मर्यादित रिश्ते, बंद कमरे में है, वो खुले रूप में समाज विरोधी है. इसी का ख्याल रखना समाज के हर वर्ग का दायित्व है. टेलीविजन पर प्रसारित होने वाला कार्य-क्रम विभेद नहीं करता कि कौन साथ-साथ बैठा है. पिता-बेटी, माँ-बेटा, कौन बैठा है, उससे मतलब नहीं है. अगर वयस्क फिल्में प्रसारित होने लगे तो प्रत्येक अभिभावक का ये एक बोझनुमा दायित्वा बन जायेगा कि अपने वयस्क, या अवयस्क बच्चे को इससे कैसे दूर रखे. कानून तो सिर्फ वयस्क और अवयस्क कि बात करता है, लेकिन समाज वयस्क बेटा-बेटी के साथ, वयस्क माता-पिता को इस तरह के फ़िल्म देखने का इजाजत नहीं देता है. कानून से भी ऐसी अपेक्षा कि जाती है की समाज सुधार के लिए कानून हो न की समाज को विकृत करने के लिए.
 . . सेंसर बोर्ड से अपेक्षा नहीं की जा सकती है की उसके पास अच्छे सोच वाले लोग होंगे जो सूझ-बुझ और निष्पक्ष ढंग से सेंसर बोर्ड के उदेश्यों को आगे बढ़ाएंगे. भोजपुरी फिल्मों में सेंसर बोर्ड के वावजूद द्विअर्थी गीत और संवाद से लगता है कि भोजपुरी अश्लीलता के लिए ही है. बहुत सारे हिंदी फिल्मों को देख कर सेंसर बोर्ड के सूझ-बुझ पर तरस आती है. देर रात की वयस्क फिल्मों की आखिर जरुरत क्या है? मनोविज्ञान के अनुसार अतृप्त इक्षाओं की पूर्ति इन वयस्क फिल्मों से होती है, आखिर कौन सी अतृप्त इक्षाएं हम इनसे पूरी करेंगे ? ये सोचने वाली बात है. समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए सही चिंतन के दृश्य दूरदर्शन को जन-जन तक पहुचना चाहिए. एक तरफ हम शराब के विज्ञापन से परहेज करते हैं. तम्बाकू सिगरेट के विज्ञापन को समाज से दूर रखते हैं, वही हम दूसरी तरफ वयस्क के नाम पर दृश्यों में वही सब दिखा देते हैं, जिन्हें हम प्रतिवंधित करते हैं.
 . . अभी देश को विदेशों के मुकाबले मजबूत बनाने की जरुरत है.एक छोटा सा देश पाकिस्तान जब चाहता है, हमें तंग कर देता है. चीन के ताकत के सामने हम फीके पड़ जाते हैं. अभी हमारे देश की प्राथमिकता, गरीबी मिटाने के लिए होनी चाहिए. भुखमरी ख़त्म करने का होना चाहिए. कुपोषण से बच्चे त्रस्त हैं उनके लिए सुपोषण की योजना होना चाहिए. भूख, भय, और भ्रष्टाचार ख़त्म करने की दिशा में हमारी सोंच कैसे बदले इस तरह के कार्य-क्रम को ले कर हम आगे बढे, तो देश का कल्याण होगा. अपनी संस्कृति को नष्ट कर पश्चिम की संस्कृति हमें बर्बाद कर देगी. हम कही के नहीं रहेंगे.

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