Friday 24 August 2012

स्कूल होमवर्क, पेरंट्स के लिए ज्ञान




स्कूल होमवर्क, पेरंट्स के लिए ज्ञान

दिल्ली के स्कूलों  का एक अघोषित उद्देश्य यह भी है कि वे पैरंट्स को भी प्रोग्रेस, ज्ञान और विद्या के पथ पर अग्रसर करते रहें। संस्कृत के एक श्लोक का आशय है कि 'विद्यार्थिनो को कुत सुख' यानी 'स्टूडंट्स को सुख कहां'। इसी को ध्यान में रखकर दिल्ली के स्कूल पेरंट्स के सुख हरकर उन्हें भी नई-नई विद्या सीखने की ओर अग्रसर करते हैं। इस उद्देश्य के लिए बच्चों को ऐसे समर हॉलिडे होमवर्क दिए जाते हैं, जिनसे पेरंट्स सुख चैन भूलकर ज्ञान प्राप्ति में लग जाते हैं।
 'रूसी भालू के क्रियाकलाप को मय फोटू पेश करो', एक स्कूल में यह होमवर्क दिया गया था। गजब दिन आ गए हैं, इंडियन स्कूलों के लिए रूस के भालू वहां के नेताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। एक जमाना था, जब रूसी नेताओं के बारे में इंडिया में खूब पढ़ाया जाता था। अब उनकी जगह भालू आ गए हैं।
 एक स्कूल में होमवर्क था, मध्यकाल के महान लोगों के बारे में बताओ। मैंने स्टूडंट से कहा, अकबर के बारे में लिख दो। उसने पूछा, क्या अचीवमंट थे अकबर के, कितने चुनाव जीते थे, अकबर ने। चुनाव तो एक भी ना जीता अकबर ने। फिर काहे का अचीवमंट, एक चुनाव जीतकर दिखाए, तब ना मानें अचीवमंट। चुनाव आयोग को खर्च का हिसाब देने में इत्ती इंटेलिजंस, महानता खर्च हो जाती है कि बाकी की महानता के लिए टाइम नहीं बचता। अकबर नहीं चलेंगे, कोई दूसरे महान बताइए।

पेरंट्स के पास भी जवाब नहीं हैं। मुझे लगता है कि जल्दी में दिल्ली में होमवर्क की वर्कशापों का आयोजन कराया जाना चाहिए, जिनमें पेरंट्स को यह समझाया जाए कि आखिर कैसे होमवर्क करवाया जाए। इस तरह की वर्कशॉप के कुछ सीन मुझे अभी से दिखाई पड़ रहे हैं : सारे बच्चे मैदान में तरह तरह के खेल-खेल रहे हैं। पेरंट्स वर्कशॉप में जुटकर होमवर्क कर रहे हैं। देखिए, आपने होमवर्क में जो लगाया है, वह अफ्रिकन भालू है, रूस का भालू नहीं, होमवर्क वर्कशॉप में इन्स्ट्रक्टर एक पेरंट को डांट रहा है।

 भालू-भालू में फर्क कैसा। रूस का हो या अफ्रीका का। नहीं होमवर्क अगर रूस के भालू का है, तो रूस का भालू लाइए। एक काम कर सकते हैं क्या? भालू के पीछे रूस का झंडा फहरा देते हैं। इससे लगेगा कि मामला खालिस रूसी है।

 देखिए, भालू अभी इस लेवल पर नहीं आए हैं कि खुद को रूसी या अफ्रिकन के हिसाब से डिवाइड करें। भालू ग्लोबल होते हैं, पर यह बात टीचरों की समझ में क्यों नहीं आती। क्योंकि टीचर्स भालुओं जितनी समझदार नहीं होतीं।

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